हमारा राम मंदिर- जिसके पुनर्निर्माण को लेकर आज भी काँग्रेस पीछे हट रही है ।
क्या हमे उसकी सच्चाई पता है ?
मैंने अपने इस लेख मे Google और अन्य कुछ साक्षों की मदद ली है, और साथ ही कुछ ऐसे प्रश्न रखे है, जिनके जवाब देश की जनता आज भी चाहती है ।
पहले हम मुस्लिम शाशक बाबर की बात करते है ।
मुस्लिम शासक बाबर 1527 में फरगना से आया था. उसने चित्तौरगढ़ के हिंदू राजा राणा संग्राम सिंह को फतेहपुर सिकरी में परास्त कर दिया. बाबर ने अपने युद्ध में तोपों और गोलों का इस्तेमाल किया. जीत के बाद बाबर ने इस क्षेत्र का प्रभार मीर बांकी को दे दिया. मीर बांकी ने उस क्षेत्र में मुस्लिम शासन लागू कर दिया. उसने आम नागरिकों को नियंत्रित
करने के लिए आतंक का सहारा लिया. मीर बांकी 1528 में अयोध्या आया और मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया
अब जरा अयोध्या के इतिहास और उससे जुड़े मुद्दो पर प्रकाश डालते है ।
अयोध्या की स्थापना – वैवस्वत मनु महाराज द्वारा सरयू तट पर अयोध्या की स्थापना की गई।
श्रीराम मंदिर – श्रीरामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए २१०० साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले ८४ स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर का ध्वंस – मीर बाकी मुस्लिम आक्रांता बाबर का सेनापति था, जिसने १५२८ ईस्वी में भगवान श्रीराम का यह विशाल मंदिर ध्वस्त किया।
पहला १५ दिवसीय संघर्ष – इस्लामी आक्रमणकारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने १५ दिन तक लगातार संघर्ष किया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई न कर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया। इस संघर्ष में १,७६,००० रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी।
कृपया मुझे बताए की उपरोक्त संख्या ज्यादा है या 1992 मरे हुये लोगो की , आखिर हमारा दोष क्या था की हमे करीब 2 लाख लोगों की जान देनी पड़ी, और ऊपर से हम पर ही आरोप लगाया गया ?
ढांचे का निर्माण – ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके। क्यू की उनकी औकात नही थी, की हमारे जैसा निर्माण कर सके, हमने तो पूरा मंदिर बना दिया उनसे तो केवल उस पर चुना लगाना था, वो भी नही हुआ । इसी बात से यह बात भी साबित होती है की ताज महल क्या है और किसने बनवाया होगा।
संघर्ष – १५२८ से १९४९ ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु ७६ संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।
रामलला प्रकट हुए – २२ दिसंबर, १९४९ की मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला प्रकट हुए। वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे।
मंदिर पर ताला – कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे को आपराधिक दंड संहिता की धारा १४५ के तहत रखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए, लेकिन एक पुजारी को दिन में दो बार ढांचे के अंदर जाकर दैनिक पूजा और अन्य अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति दी। श्रद्धालुओं को तालाबंद द्वार तक जाकर दर्शन की अनुमति थी। ताला लगे दरवाजों के सामने स्थानीय श्रद्धालुओं और संतों ने “श्रीराम जय राम जय जय राम” का अखंड संकीर्तन आरंभ कर दिया।
सबसे मुख्य तथ्य “मंदिर बनाने का संकल्प – पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री दाऊ दयाल खन्ना ने मार्च, १९८३ में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया। दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारी लाल नंदा मंच पर उपस्थित थे।”
अब आप बताए की काँग्रेस क्यू अपनी ही प्रतिज्ञा पर अमल नही करती ?
पहली धर्म संसद – अप्रैल, १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया।
राम जानकी रथ यात्रा – विश्व हिन्दू परिषद् ने अक्तूबर, १९८४ में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की। लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएं रोकनी पड़ी थीं। अक्तूबर, १९८५ में रथ यात्राएं पुन: प्रारंभ हुईं।
अब मुझे बताए की क्या कारण थे की इन्दिरा गांधी
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