असोथर, अंप्र: प्राचीन जागेश्वर धाम की स्वयंभू शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा महाभारत काल में अज्ञातवास के समय पांडवों ने की थी। बाद में राजा भगवंत राय ने जागृत शिवलिंग की पूजा-अर्चना के साथ मेला की शुरुआत कराई।
असोथर-गाजीपुर के मध्य स्थित जागेश्वर धाम से भक्तों की अटूट आस्था है। महाभारत काल में यह क्षेत्र राज विराट के अधीन था। यही कुंती पुत्र पांडवों ने अज्ञातवास के समय रहकर जंगल में प्रकट शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कर तप किया था। बाद में अश्वस्थामा जी इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते रहे। तत्पश्चात खींची वंश के राजा भगवंत राय ने शिवलिंग की गहराई जानने के लिए खुदाई करवाई तथा उसे सीधा करने के लिए हाथी के पैर में रस्सी बांधकर खिंचवाया गया तो हाथी की मृत्यु हो गई। कालांतर में भागलपुर बिहार निवासी प्रवक्ता द्वारा भव्य मंदिर का निर्माण संवत 1950 में करवाया गया। इस धाम में महाशिवरात्रि से होली तक 15 दिन का मेला लगता है। सावन मास में तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। पुजारी त्रिभुवन नाथ गोस्वामी का कहना है कि इस दिव्य धाम में बिहार, मध्य प्रदेश सहित कई जनपद से भक्त दर्शन करने आते हैं। जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है।
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