मृत्यु भोज से संबंधित एक वाक्य मैने पढ़ा था की जब किसी जानवर का साथी मर जाता है तो वह दिन भर चारा नहीं खाता जबकि 84 लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य ,आदमी की मृत्यु पर हलवा पूरी खाकर शोक मानाने का ढोंग रचाता है ।
इससे बढ़कर निंदनीय कार्य क्या हो सकता है ।
वैसे सबकी अपनी अपनी विचारधारा है जब किसी परिवार में कोई एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो क्या उसके परिवार में उस व्यक्ति की आत्मा को शांति दिलाने के लिए भोज कराने क्षमता बची होगी परंतु समाज ने प्रथा बनाकर रखी है तो मजबूरी वश उस परिवार को भोज कराना पड़ेगा क्योंकि उनके मन में ये बात शुरू से भर दी गयी है कि मृत्यु भोज आत्मा की शान्ति के लिए होता है ये बात खटकने लगेगी की भोज नही कराया तो आत्मा को शांति कैसे मिलेगी और वो भी मृत्यु भोज करवाएंगे किसी भी हलात में ।
यही बात अकाल मृत्यु पर भी होती है ।
तो बात ये है कि आज हम जगह जगह पर सुनते है कि आज इस समाज की बैठक है इस मुद्दे पर तो क्यों न एक बैठक मृत्यु भोज पर भी की जाये और सर्वसम्मति से इस पर रोक लगाई जाए क्योंकि यदि धनिक भोज कराये और निर्धन न कराये तो ये तो दोहरे मापदंड हो जायेंगे फिर हम सब एक कैसे हो पायेंगे।
मेरी लेखनी कितना बदल गया इंसानfacebook.com/ABHISHAR100
इससे बढ़कर निंदनीय कार्य क्या हो सकता है ।
वैसे सबकी अपनी अपनी विचारधारा है जब किसी परिवार में कोई एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो क्या उसके परिवार में उस व्यक्ति की आत्मा को शांति दिलाने के लिए भोज कराने क्षमता बची होगी परंतु समाज ने प्रथा बनाकर रखी है तो मजबूरी वश उस परिवार को भोज कराना पड़ेगा क्योंकि उनके मन में ये बात शुरू से भर दी गयी है कि मृत्यु भोज आत्मा की शान्ति के लिए होता है ये बात खटकने लगेगी की भोज नही कराया तो आत्मा को शांति कैसे मिलेगी और वो भी मृत्यु भोज करवाएंगे किसी भी हलात में ।
यही बात अकाल मृत्यु पर भी होती है ।
तो बात ये है कि आज हम जगह जगह पर सुनते है कि आज इस समाज की बैठक है इस मुद्दे पर तो क्यों न एक बैठक मृत्यु भोज पर भी की जाये और सर्वसम्मति से इस पर रोक लगाई जाए क्योंकि यदि धनिक भोज कराये और निर्धन न कराये तो ये तो दोहरे मापदंड हो जायेंगे फिर हम सब एक कैसे हो पायेंगे।
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